महामारी के बीच वंचित किशोरियों की शिक्षा

हबीबा और हसीबा अपने परिवार में पहली लड़कियां हैं जो स्कूल में पढ़ रही हैं। हबीबा कस्तूरबा गांधी विद्यालय नूह में कक्षा 9 में पढ़ती है और उसकी बड़ी बहन हसीबा 12वीं की छात्रा है। उनका पैतृक निवास उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के पास एक गांव में है। कई वर्षों पहले इनका परिवार रोजगार की तलाश में नूह आया था और तब से यहीं रह रहा है। हबीबा के अब्बू और अम्मी ने कोई भी औपचारिक पढ़ाई नही की। उसके बड़े भाई ने भी पांचवी तक स्कूल जाने के बाद रोजगार के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। पिछले साल तक हबीबा के अब्बू और बड़ा भाई भवन निर्माण में मजदूरी का काम करते थे। पिछले एक साल से सब काम धाम बंद है, इसलिए परिवार बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। एक ओर जहां पूरा विश्व महामारी से लड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर ये परिवार दोनों समय भरपेट भोजन के लिए भी संघर्षरत है। हबीबा की अम्मी को कुछ बीमारी है। अचानक सीने में दर्द होता है और फिर वो आधे एक घंटे के लिए बेहोश हो जाती हैं। उन्हें अच्छे डॉक्टर और इलाज के जरूरत है। पर वर्तमान परिस्थितियों में शायद अभी ये लंबे समय तक संभव नहीं है।

अब लगभग 15 महीनों से स्कूल बंद हैं। पिछले साल बच्चों की पढ़ाई के लिए सरकार द्वारा ऑनलाइन माध्यम से कई प्रयास किए गए हैं। पर वंचित बच्चों के बीच स्मार्ट फोन की उपलब्धता और उससे जुड़ी कई  चुनौतियाँ  हैं। हबीबा और हसीबा की पढ़ाई भी इन्ही चुनौतियों के साथ जारी है।  परिवार में एक ही फोन है जो अब्बू के पास रहता है। बड़ी बहन बारहवीं में है इसलिए उसकी पढ़ाई को ज्यादा तवज्जो मिलती है और हबीबा अपने शिक्षकों द्वारा व्हाट्सएप पर भेजे गए काम कम ही कर पाती

स्वतालीम फाऊंडेशन हरियाणा के मेवात जिले के कस्तूरबा गांधी विद्यालयों के साथ काम कर रही है जिससे बालिकाओं को बेहतर शिक्षा सुनिश्चित की जा सके। महामारी के दौर में वंचित बच्चों को शिक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास में साथियों ने कई विकल्प खोजे और इस प्रक्रिया में IVRS (Interactive Voice Response System) एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया। IVRS के माध्यम से किसी भी बड़े समूह को रिकॉर्ड करके मैसेज भेजे जा सकते हैं और उसमें कुछ सवाल करने और उनके जवाब विकल्पों को चुन कर दर्ज किए जा सकते हैं।  इसकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि IVRS माध्यम से संवाद के लिए स्मार्टफोन की जरूरत नही होती है और ये हर फोन पर काम करता हैं। इसके लिए डाटा की आवश्यकता भी नही होती है।

IVRS के माध्यम से मेवात के पांच कस्तूरबा गांधी विद्यालयों– नूह, पुन्हाना, तावडू, नगीना और फ़िरोज़पुर झिरका में पढ़ने वाली छात्राओं के साथ संवाद की शुरुआत मई 2020 में हुई। हबीबा के विद्यालय में भी स्वतालीम फ़ाउंडेशन काम करती है। इस प्रक्रिया में छात्राओं को हफ्ते में दो बार कहानियां भेजी जाती हैं। ये कहानियां एक ओर जहां उनके पाठ्यक्रम से जुड़ती हैं वही दूसरी ओर उनको बाल साहित्य से परिचित करवाती है। ये कहानियां ऐसी हैं जो कुछ हद तक उनके पाठ्यक्रम से जड़ती हैं और साथ ही उनको दुनिया और समाज के बड़े मुद्दों पर समझ बनाने और अपनी राय बनाने में मदद करती हैं। इन कहानियों को बच्चे कितना समझ पा रहे हैं इसकी परख के लिए हर कहानी के साथ चार प्रश्न भी पूछे जाते हैं, जिनका उत्तर छात्राएं फोन के माध्यम से दे पाती हैं।

इस माध्यम के बारे में हबीबा का कहना है– “पिछले एक साल में ज्यादातर समय हम लड़कियां घर में ही रहते हैं। और इस वजह से घर का काम भी बहुत बढ़ गया है। स्कूल का काम व्हाट्सएप पर आता है पर फोन बड़ी बहन के पास होता है। उसकी बोर्ड की परीक्षा है। तो मैं अपने स्कूल का काम कम कर पाती हूं। सब सहेलियों से बातचीत भी कम हो गई थी। हर तरफ डर का माहौल था। पर जबसे ये कहानियों का सिलसिला शुरू हुआ है तब से हमें ये एहसास होता है कि कोई तो है जिसे हमारी फिक्र है और जो हमसे बात कर रहा है। कई बार घर के हम सबलोग मिलकर कहानियां सुनते हैं और उसपर चर्चा करते हैं। इसमें मेरे अम्मी और अब्बू भी शामिल होते हैं। कहानियां सुनकर कभी कभी रोना भी आता है। बचपन और स्कूल के अच्छे दिनों में हम लौट जाते हैं। इन कहानियों से हमारा मन लग जाता है। काफी कुछ सीखते हैं हम इन कहानियों से जो हमारे जीवन में मदद करता है। अब तक भेजी गई सभी कहानियों में से मुझे छिपकिली की पूछ कहानी सबसे अच्छी लगी क्यूंकी उसमे दोस्ती के महत्व को बताया गया है। और ये ऐसा समय है जब हम अपने दोस्तों से मिल भी नहीं पा रहे हैं। अगर कभी किसी जरूरी काम से अब्बू बाहर चले जाते हैं तो हम अगले रोज कहानी सुन लेते हैं या फिर जो नंबर है उसपर फोन मिलाकर भी कहानी सुन लेते हैं। कहानियों से हमें काफी कुछ सोचने और समझने के लिए मिलता है।

IVRS के माध्यम से अब तक लगभग 70 कहानियां भेजी गई हैं। इसके लिए अभी तक 65000 से ऊपर कॉल की गई हैं। एक कहानी और उसके प्रश्न औसतन साढ़े छह मिनट के होते हैं। इस हिसाब से 7100 घंटे से ज्यादा समय इन कॉल के माध्यम से सृजित किए गए हैं। अब इस प्रक्रिया को चलते हुए 40 से ऊपर हफ्ते बीत चुके हैं। हमारे अनुभव में IVRS वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए एक प्रभावी माध्यम है।

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